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आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः।

अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।
अर्थ शस्त्रों में वज्र और गऊओं में कामधेनु मैं हूँ, संतान उत्पत्ति के लिए जो कामदेव है, वो मैं हूँ और सर्पों में सर्पराज वासुकि मैं हूँ। नागों में शेषनाग और जल जंतुओं का अधिपति वरूण देवता मैं हूँ, पितरों में अर्यमा और शासन करने वाला यमराज मैं हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 28-29 जिससे युद्ध किए जाते हैं वह अस्त्र शस्त्र होते हैं। उन अस्त्र-शस्त्र में वज्र (पत्थर) के बने अस्त्र-शस्त्र भगवान की विभूति है। सभी गायों में कामधेनु मुख्य है वेद, पुराणों में कामधेनु स्वर्ग की गाय को कहते हैं, वह कामधेनु सम्पूर्ण देवताओं की कामनापूर्ति करने वाली है, इसलिए भगवान की विभूति है। कामदेव मैं हूँ: काम नीचे की तरफ बहता है तो कामवासना बन जाता है और ऊपर की तरफ काम बहने लगे तो कामदेव बन जाता है। जीवन की समस्त उत्पत्ति काम से हुई है, सृष्टि भी काम से उत्पन्न हुई है, शास्त्र कहते हैं ब्रम्हा ने जब जगत को उत्पन्न किया तब कामना पैदा हुई, काम का जन्म हुआ ब्रम्हा से तब जगत बना। इस जगत में कुछ भी पैदा होता है तो उसके होने का कारण काम है, कृष्ण कहते हैं मैं कामदेव हूँ, वो यह कह रहे हैं कि यह पूरा जीवन मुझसे ही पैदा होता है, यह जीवन का सारा खेल मेरा ही खेल है संसार की उत्पत्ति काम से होती है, जो सन्तान उत्पत्ति के लिए किया जाता है, उस काम की बात कर रहे हैं भगवान ना कि मन में भोग कामना रहती है उसकी बात कर रहे हैं, सन्तान उत्पत्ति के लिए किया जाए वह काम भगवान की विभूति है। वासुकि सर्प सम्पूर्ण सर्पों के अधिपति है, भगवान के भक्त हैं, वेद पुराणों में कहा गया है कि समुन्द्र मन्थन के समय इन्हीं की मन्थन डोरी बनाई गई थी यह भी भगवान की विभूति है। नागों में शेषनाग और जल जन्तुओं का अधिपति वरूण मैं हूँ। अनल, सोम आदि सात पितृगण है इन सब में अर्यमा नाम वाला पितर भगवान की विभूति है। यमराज मैं हूँ: गरीब-अमीर, राजा-प्रजा, बुद्धिमान-मूढ, सुन्दर-करूप, सफल-असफल, गोरे-काले, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढे मृत्यु के सामने सब समान हैं, मृत्यु तो मृत्यु है उसके लिए सब बराबर है, मृत्यु इस जगत में सबके लिये सत्य और समान है, इस पृथ्वी पर ऐसे-ऐसे लोग आए जिनके भय से पूरी पृथ्वी भयभीत रहती थी, लेकिन मृत्यु रूपी यमराज सबको निगल गया, मनुष्य सत्तर वर्ष तक धन के पीछे दौड़ता है और जब मृत्यु आती हैं, तब मृत्यु को कहो कि मैं बहुत धनवान हूँ मैंने सत्तर वर्ष के जीवन में बहुत कमाया, मैं राजा भी बना मेरे पास इतना धन है, और आप कहो मृत्यु को कि मैं सत्तर वर्ष का कमाया हुआ सब धन देता हँू तुम मुझे सत्तर घंटे जीवन और दे दो, यमराज कहेगा कौन-सा धन जिसे तुम धन कहते हो, मृत्यु के लिए सब मिट्टी है। मृत्यु कहेगी इस धन के लिए मैैं सत्तर घंटे तो क्या सत्तर सैकंड भी नहीं दूँगा, मृत्यु मजदूर और राजा को बराबर समझती है, यह राजा-प्रजा, गरीब धनवान यह सब तो मनुष्य का बनाया हुआ बाजार है, मृत्यु को इनसे क्या मतलब, मृत्यु तो सबके लिए समान मृत्यु ही है। सिकन्दर ने पूरी पृथ्वी को जीत ली और कहते हैं सिकन्दर जब भारत से वापिस यूनान लौट रहा था तो सफर में सिकन्दर बीमार पड़ गया था तब के समय के डॉक्टर होते थे हकीम, नाड़ीवेद उन लोगों ने सिकन्दर की हालत देख कर सिकन्दर को कहा, हजुर आपका जीवन कुछ ही घंटों का और बचा है, आपको जहर दिया गया है और वह जहर धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल चुका है और आप आठ घंटे से ज्यादा नहीं जी पाएँगे, इतना सुनकर सिकन्दर हँसने लगा और कहने लगा शायद आपको पता नहीं मैं सिकन्दर हूँ मैंने पूरी दुनिया जीत ली है। मुझको इतनी जल्दी मौत कैसे आ सकती है। कहते हैं सिकन्दर की जब मौत हुई उसकी उम्र तैंतीस वर्ष की थी, जीवन और मृत्यु का ज्यादा ज्ञान नहीं था, तब नाड़ीवेदों को कहा कि तुम मेरे दोस्त सेल्यूकस को बुलाओ, फिर अपने तंबू से सेल्यूकस सिकन्दर के पास आया तब सिकन्दर, अपने दोस्त को कहने लगा कि इन वेदों की बात सुनो, सेल्यूकस सब बातों को समझा, फिर अपने दोस्त सिकन्दर को समझाने लगा कि मृत्यु के आगे फकीर और राजा सब समान हैं, मृत्यु सत्य है इसको कोई आज तक टाल नहीं सका, मेरे भाई मृत्यु अटल और निश्चित है, सिकन्दर ने कहा मरना सत्य ही है तो मेरी अंतिम इच्छा है की मैं मेरी माँ से मिलूँ, तब सेल्यूकस ने कहा कि हम रात-दिन हाथी घोड़ो पर चलें तब भी दो दिन यूनान पहँुचने में लग जाएँगे और हकीम कह रहे हैं तुम आठ घंटे से ज्यादा जी नहीं पाओगे, इतने में मृत्यु आ जाएगी, तब सिकन्दर ने कहा पूरी दुनिया मृत्यु को दे दो, मेरा सारा धन राज्य सब कुछ दे दो, लेकिन मेरी माता से मुझे मिला दो, तब सेल्यूकस ने कहा मेरे भाई मृत्यु सब पर शासन करने वाला यमराज है, मृत्यु एक पल भी नहीं रुकती, तब सिकन्दर को ज्ञान हुआ कि यह सब संसार नाशवान है, धन भी नाशवान है, तो तुम एक काम करना मेरे मित्र, मेरे भाई कि जब मेरी अर्थी निकले तब मेरे दोनों हाथ अर्थी से बाहर निकाल देना, ताकि दुनिया को एक संदेश मिले, जो भी देखे उसको यह ज्ञान हो कि सिकन्दर ने पूरी दुनिया जीत ली फिर भी देखो खाली हाथ जा रहा है। इस पृथ्वी पर सब पर शासन करने वाला यमराज मैं हूँ। सत्तर वर्ष तक के जीवन मंे मनुष्य धन के पीछे भागता है, उस धन का बस इतना भी महत्त्व नहीं कि उसके बदले में आपको सत्तर मिनट भी मिल जाए। इसलिए मनुष्य को इस नाशवान धन को छोड़कर, ऐसे धन की खोज करनी चाहिए जो आगे के लिए काम आए, परमात्मा का किया ध्यान-सिमरन ही सही मायने में असली धन है, इसलिए यमराज कभी भी आए तुम एकीभाव से आत्मा में स्थित रहो, तभी इस मृत्युलोक के आवागमन के चक्र से बाहर हो पाओगे।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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