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अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।।

उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।
ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्।।
अर्थ सम्पूर्ण वृक्षों में पीपल, देवऋषियों में नारद, गंधर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ। घोड़ों में अमृत के साथ ऊंचे उच्चैःश्रवा और श्रेष्ठ हाथियों में ऐरावत नामक हाथी को तथा मनुष्यों में राजा को मेरी विभूति मानो। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 26-27 पीपल एक शांत वृक्ष है, इसके नीचे हर कोई पेड़ लग जाता है, यह पहाड़, दीवार, छत आदि कठोर जगह पर भी पैदा हो जाता है। पीपल के पूजन की बड़ी महिमा है, आयुर्वेद में बहुत सी बीमारियों का ईलाज करने की शक्ति पीपल वृक्ष में बताई गई है, भगवान ने पीपल को अपनी विभूति बताया है। देवऋषियों में मैं नारद हूँ: नारद के लिए जगत एक मंच है और जिन्दगी एक नाटक है, एक खेल है इसको कोई गंभीरता से लेता है वह बीमार है, श्री कृष्ण हँसते हुए, बाँसुरी बजाते और गोपीयों के साथ नाचते हुए दिखाई पड़ते हैं कृष्ण के लिये जिन्दगी एक उत्सव है जिन्दगी अपने आप में आनंद पूर्वक खेल है। आपने देखा होगा रामलीला में राम और रावण का रोल करने वाले हकीकत में राम और रावण नहीं होते उनको पता है कि यह तो एक नाटक है जैसे वह जानबूझकर नाटक करते हैं वैसे ही यह सारा संसार नारद के लिये खेल है कृष्ण कहते हैं- यह सारा जगत एक लीला है, नाटक यानि खेल है और यह खेल मेरे से ही होता है, इसलिए मैं नारद हूँ। एक तो साधना करके सिद्ध होते हैं और एक जन्म जात सिद्ध होते हैं, कपिल मुनि को आदि सिद्धि कहा जाता है, सांख्य के आचार्य है इसलिए यह परम की विभूति है। सब विभूतियों में बल, सामर्थ्य, तेज आदि सब परमात्मा की ही आभा है, इनको देखकर भी परमात्मा का चिन्तन करना चाहिए। आगे परमात्मा अपनी और विभूतियों का वर्णन करते हैं कि।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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