रुद्राणां शङ्करश्चास्मि वित्तेशो यक्षरक्षसाम्।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।
वसूनां पावकश्चास्मि मेरुः शिखरिणामहम्।।
अर्थ रूद्रों में शंकर हूँ और यक्ष राक्षसों में कुबेर मैं हूँ, वुसओं में पवित्र करने वाली अग्नि और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरू पर्वत मैं हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 23
ग्याहर रूद्रों में शंकर परम की विभूति है भगवान शंकर परम ही है।
यज्ञ तथा राक्षसों के धन के स्वामी कुबेर परम ही आभा है।
वसुओं में पवित्र करने वाली अग्नि है, परमात्मा का ही तेज है। अग्नि की आभा।
पर्वतों में मैं सुमेरू पर्वत हूँ, सुमेरू पर्वत सोने तथा रत्नों का भण्डार है इसलिए यह भगवान की विभूति है।