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आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।
अर्थ मैं अदिति के पुत्रों में विष्णु हूँ और प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य मैं हूँ। मैं मरूतों का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा मैं हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 21 हम ऐसा कह सकते हैं ब्रह्मा और महेश तो प्रारंभ और अंत के दो छोर हैं, लेकिन पूरे जीवन का जो फैलाव है, दो छोर के मध्य में जीवन सफर है वह तो विष्णु का फैलाव है, इसलिए मध्य में यानि जीवन के समय में वही शक्ति जो जीवन को धारण करती है वह विष्णु है। शुरूआत से अब तक भगवान ने अर्जुन को ज्ञान समझाया, समझाने के बाद भी अर्जुन को ज्ञान समझ नहीं आया वह कहता है कि अपनी विभूति को विस्तार पूर्वक कहिए तब श्री कृष्ण अर्जुन को चित्र रूप में ज्ञान समझा रहे हैं जैसे छोटे बच्चे को चित्र से पढ़ाया जाता है ‘क’ कबूतर ‘ख’ खरगोश चित्र दिखा कर पढ़ाते हैं, ऐसे ही श्री कृष्ण अर्जुन को ज्ञान पढ़ा रहे हैं कि मैं विष्णु हूँ, विष्णु के माध्यम से कृष्ण कहते हैं कि मैं बहुत निकट हूँ आती हुई साँस में और जाती हुई साँस में, खून कि गति में, यह जो जीवन को सँभाले हुए है यह जो जीवन का आधार है वह मैं हूँ। विष्णु का अर्थ है जीवन का आधार और वह मैं हूँ। सूर्य:चन्द्रमा, नक्षत्र, तारा, अग्नि आदि जितनी भी प्रकाशमान चीजें हैं, उनमें किरणों वाला सूर्य मेरी विभूति है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से सभी प्रकाशमान होते हैं। सूर्य मैं हूँ: पदार्थ की आखिरी इकाई को विज्ञान परमाणु कहते हैं वैसे ही अगर हम परम विराट रूप को ध्यान से देखें तो सूर्य परम की सबसे छोटी इकाई है। आप अगर रात में तारे देखते हो तो आपको कभी ख्याल नहीं आया होगा कि इनमें एक भी तारा नहीं, यह सभी तारे नहीं यह सूर्य है, हमारे सूर्य से बहुत बड़े हैं, हम पृथ्वी से देखें तो हमारा सूर्य भी बहुत बड़ा है, पृथ्वी से तेरह लाख गुणा बड़ा है, लेकिन और सूर्य इस सूर्य से लाखों गुणा बड़े हैं, पृथ्वी से उन सूर्य (तारों) की दूरी बहुत ज्यादा दूर है जैसे सूर्य से किरण निकले तो उस प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में आठ मिनट सोलह सैकंड लगते हैं यानि सूरज की किरण जितनी गति से आती है उसी रफ्तार से अगर हम पृथ्वी से सूर्य पर जाएँ तो आठ मिनट सोलह सैकंड लगती है सूर्य तक पहँुचने में, परन्तु सूर्य की किरण की रफ्तार है एक सैकंड में तीन लाख मील की दूरी तय करना, अगर इस रफ्तार का यान कभी मनुष्य ने बना भी लिया तो वह यान पहुँच नहीं पाएगा क्योंकि इतनी रफ्तार से वह भी किरण बन जाएगा यानि आग बन जाएगा, अगर तारों की बात करें, सूर्य की रफ्तार से चले तो, पृथ्वी के सबसे नजदीक तारे पर पहुँचने में चार साल लगते हैं, यह निकट तारे पर पहुँचने का समय है, विज्ञान ने अब तक अरबों तारों की खोज की है, यह खोज की सीमा है परम की सीमा नहीं, विज्ञान कहता है पृथ्वी कि उत्पत्ति अब से लगभग चार अरब वर्ष पहले हुई है, कुछ तारे पृथ्वी की उत्पत्ति से करोड़ों वर्ष पहले बने थे, उन सूर्य की निकली किरण अब तक पृथ्वी पर नहीं पहुँची जैसे कोई तारा अब से चार करोड़ वर्ष पहले था उसकी निकली किरण ही शायद हमको दिखाई दे रही हो, क्या पता अब वहाँ तारा है भी के नहीं, क्या पता वहाँ तारा खत्म हो गया है, बस हमें किरण की चमक ही दिखाई दे रही हो, नहीं तो तीन लाख पर सैकंड की रफ्तार से किरण चली और चार अरब वर्ष से चलती आ रही है फिर भी उनकी किरण अब तक नहीं पहुँची। यह आकाश जितना आपको दिखता है उतना ही नहीं, यह तो आपकी आँखों की कमजोरी कि वजह से इतना दिखता है, यह आकाश और भी विराट है, आप रात के तारे देखकर कहते होंगे असंख्य तारे हैं, इस गलतफहमी में मत पड़ना कि यह असख्ंय है, अच्छी से अच्छी आँख वाला मनुष्य चार हजार से ज्यादा तारे नहीं देख सकता, आप गिन नहीं पाते इसलिए आपको असंख्य लगते हैं, दूरदर्शी यंत्र से ब्रह्म में दस हजार करोड़ आकाश गंगाएँ हैं, हर आकाश गंगा में बीस हजार करोड़ तारे हैं अभी तक तारे देखे जा चुके हैं लेकिन इतने तारे भी परम की सीमा नहीं, परम उसके भी पार है फिर उस के भी पार है, कोई सीमा नहीं है अंनत है परम विराट। अरबों सूर्यों का अपना-अपना सौर परिवार है, जैसे हमारे सूर्य का परिवार है पृथ्वी, चाँद, मंगल, बृहस्पती आदि, ऐसे यह एक सूर्य का परिवार है, ऐसे ही अरबों सूर्यों का अपना-अपना परिवार है, एक सूर्य के नष्ट होते ही उनका परिवार भी नष्ट हो जाता है, एक सूर्य के पैदा होते ही उसका परिवार पैदा हो जाता है। ब्रह्म का परमाणु भी कभी नष्ट नहीं हो सकता और ना ही परमाणु को उत्पन्न कर सकते, न बदल सकते हैं, ऐसे ही एक सूर्य नष्ट होता है तो, दूसरी जगह उत्पन्न हो जाता है। परम विराट में सूर्य सबसे छोटी इकाई है, लेकिन कृष्ण को पता है कि अर्जुन की नजरों में सूर्य बहुत बड़ा है तब अर्जुन को ज्ञान चित्रों में दिखाकर कृष्ण कहते हैं कि मैं सूर्य हूँ।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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