अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च।।
अर्थ हे नींद को जीतने वाले अर्जुन सम्पूर्ण प्राणियों के आदि मध्य और अंत में मैं ही हूँ और सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा मैं ही हूँ। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 20
सम्पूर्ण प्राणियों (मानव, पशु, पक्षी, जीव जन्तु आदि सब प्राणी हैं, सब में प्राण है) के शरीर में जो आत्मा है, भगवान कहते हैं कि वह मैं ही हूँ, अर्थात परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा का अंश अपने भीतर है वह आत्मा कहलाती है, कोई व्यक्ति यह सोचता है कि सबकी आत्मा अलग-अलग है उस व्यक्ति को आत्मा का अभी तक कोई ज्ञान नहीं, अभी वह शरीरों को अलग-अलग मानकर आत्मा की कल्पना कर रहा है, आत्मा अलग-अलग नहीं सबकी एक है, जैसे मान लेते हैं सौ बल्ब जल रहें हैं, उनमें से एक बल्ब तोड़ दिया जाए तो भी बाकी बल्ब तो जलते रहेंगे, ऐसे ही सब शरीर बल्ब कि तरह हैं, लेकिन जैसे सब बल्बों में बिजली एक है बल्ब अलग-अलग हैं ऐसे ही सब शरीरों में आत्मा एक है और शरीर अलग-अलग हैं।
कृष्ण कहते हैं सम्पूर्ण प्राणीयों के हृदय में स्थित आत्मा ‘‘मैं’’ हूँ।
परमात्मा का तेज ही मनुष्य की आत्मा है तथा सब मनुष्यों का आदि, मध्य, अंत अर्थात भूतकाल, वर्तमान, भविष्य सब कुछ मैं ही हूँ।
अर्जुन नींद को जीतने वाले थे तब उनका नाम गुडाकेश था।