श्री भगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे।।
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे।।
अर्थ भगवान बोले - मैं अपनी दिव्य आत्मा विभूति को तेरे लिए विस्तार से कहूँगा क्योंकि हे कुरूश्रेष्ठ मेरी विभूतियों के विस्तार का अंत नहीं। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 19
भगवान बोले हाँ ठीक है मैं अपनी विभूतियों को विस्तार से कहूँगा, कुरूवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन मेरी विभूतियों (रचना, आभा, तेज) के विस्तार का अंत नहीं। जिसका अंत है वह अनन्त नहीं हो सकता और जो अनन्त है उसका अंत नहीं हो सकता। भगवान की विभूतियों का अंत नहीं, कारण कि भगवान अनन्त है और उनकी विभूतियाँ भी अनन्त है।