Logo
सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव ।
न हि ते भगवन्व्यक्तिं विदुर्देवा न दानवारू ।।

स्वयमेवात्मनाऽत्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते।।

वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि।।1
अर्थ हे केशव ! मुझसे आप जो कुछ कह रहे हैं, यह सब मैं सत्य मानता हूँ। हे भगवन! आपके प्रकट होने को न देवता जानते हैं और न दानव जानते हैं। हे भूतभावन, हे भूतेश, हे देवदेव, हे जगत रचयिता, हे पुरूषोत्तम, आप स्वयं ही अपने आत्मा से अपने को जानते हैं। इसलिए जिन विभूतियों से आप इन सम्पूर्ण लोकों को व्याप्त करके स्थित हैं। उन सभी अपनी दिव्य विभूतियों का विस्तार से व्याख्या करने में आप ही सामर्थ हैं। व्याख्यागीता अध्याय 10 का श्लोक 14-16 अर्जुन कहते हैं कि हे केशव आपने मुझको जो शुरूआत से अब तक जो ज्ञान बताया वह सम्पूर्ण ज्ञान मैं सत्य मानता हूँ। आपके प्रकट होने को ना देवता ना दानव जानते हैं यानि मनुष्य, देवता, दानव आदि कोई भी अपनी-अपनी बुद्धि से शक्ति से, सामर्थ्य से, योग्यता से, भगवान को नहीं जान सकते, उनको त्याग, वैराग्य, तप, स्वअध्ययन, मन को निर्मल करके अनन्य भाव से उनके शरण होकर जानोगे तो उनकी कृपा से ही जान सकते हो उनकी कृपा बगैर परम की अनन्त विभूति और योग को जान नहीं सकता कोई भी। बूँद सागर को नहीं जान सकती, सागर को जानने के लिए खुद बूँद को सागर बनना पड़ता है। अर्जुन कहते हैं, सम्पूर्ण प्राणियों के ईश्वर, देवों के देव, जगत के स्वामी, हे पुरूषोत्तम आप खुद ही अपने आप को जानते हो, इसलिए आप ही अपनी दिव्य विभूतियों को सम्पूर्णता से कहने का ज्ञान रखते हो, जिन विभूतियों के (तेज के) द्वारा आप इन सब लोकों को व्याप्त करते स्थित है।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]