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भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।
अर्थ आप द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्राम विजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण ओर सोमदत्त का पुत्र है। व्याख्याआप, भीष्म, कर्ण और संग्राम विजय कृपाचार्य आप और भीष्म दोनों बहुत विशेष पुरूष हैं। आप दोनों के समकक्ष संसार में तीसरा कोई भी नहीं। देवता, यक्ष, राक्षस, मनुष्यों आदि में ऐसा कोई नहीं जो आपके सामने टिक सके। (द्रोणाचार्य युद्ध में धृष्टद्युमन के हाथों मारे गये थे और भीष्म अर्जुन के तीरों से बिधने के बाद इच्छा मृत्यु से मरे थे) कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है। जो अकेला पाण्डव सेना पर विजय प्राप्त कर सकता है। उनके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं, ऐसा कर्ण भी हमारे पक्ष में है। (कर्ण युद्ध में अर्जुन के हाथों मारा गया था) कृपाचार्य की तो बात ही क्या है वह तो चिरंजीवी है। सम्पूर्ण पाण्डव सेना को अकेले जीत सकते हैं। वैसे तो दुर्योधन को द्रोण व भीष्म के बाद कृपाचार्य का नाम लेना चाहिए था लेकिन दुर्योधन को जितना कर्ण पर विश्वास था उतना कृपाचार्य पर नहीं था। इसलिए कर्ण का नाम बीच में भीतर से फिसलकर बाहर आ गया। भीष्म व द्रोण बुरा ना समझ ले इस बात का, तब दुर्योधन ने कृपाचार्य नाम के आगे संग्राम विजय लगाया, (आप भीष्म, कर्ण और संग्राम विजय कृपाचार्य) प्रसन्न करने के लिए । ऐसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र है। अश्वत्थामा ये भी चिरंजीवी है और आपके ही पुत्र है। इन्होंने आपसे ही अस्त्र शस्त्र सीखा है ये बड़े ही शूरवीर है। विकर्ण आप यह ना समझे कि पाण्डव सेना में ही धर्मात्मा है मेरा भाई विकर्ण भी बड़ा धर्मात्मा व शूरवीर है। ऐसे ही सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा है (युद्ध में विकर्ण भीम के द्वारा व भूरिश्रवा सात्यकि के हाथों मारे गये थे)।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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