Logo
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।।

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।
अर्थ जब कुल का धर्म क्षय होता है, तो उसकी सभी संस्कृतियाँ और मूल्य नष्ट हो जाते हैं। धर्म के नाश होने पर, पूरा कुल अधर्म के प्रभाव से ग्रसित हो जाता है। हे कृष्ण इस स्थिति में, उस कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, जिससे वर्ण संकर उत्पन्न होता है। यह वर्ण संकर कुल की नाशकता को बढ़ाता है और उसे नरक की ओर ले जाता है। इसके अलावा, कुलघातियों के पितर भी अपने स्थान से गिर जाते हैं, क्योंकि उनको श्राद्ध और तर्पण का आदान-प्रदान नहीं होता। इस प्रकार, कुलधर्म और जाति धर्म की स्थिति नष्ट हो जाती है,हे जनार्दन! जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं,हमने सुना है कि उनका सदा नरक में वास होता है। व्याख्याजब किसी भी युद्ध में कुल के जितने भी ज्ञानी व्यक्ति जो शास्त्रों का ज्ञान रखते हैं, वह मारे जाते हैं तब पीछे कुल में बच्चें व औरतें ही बचती हैं। उनको अच्छी शिक्षा देने वाला नहीं बचता है तब इससे वह मनमाना आचरण करने लग जाते हैं। यानी ना करने वाले कार्य करते हैं उससे अधर्म बढ़ जाता है। औरतों के दूषित होने से वर्णसंकर पैदा होता है। पुरूष व स्त्री अलग-अलग वर्ण के होने से उनसे जो संतान पैदा होती है वह वर्णसंकर कहलाती है मिश्रण को संकर कहते है। अर्जुन कहते हैं कि ऐसे सनातन धर्म नष्ट होने से अनिश्चित समय तक नरक में वास होता है ऐसे हम सुनते आए हैं।  घर में जब तक बड़े व मुखिया होते हैं तब तक वह अपने बच्चों में अच्छे संस्कार भरते हैं व स्त्रियों की रक्षा करते हैं। जब कोई उनपे शासन करने वाला नहीं रहता तब बच्चे अज्ञान में भटककर नशे की लत या अज्ञानी आलसी बनते हैं और औरतों को ताकतवर उठा ले जाते थे। उससे उनके कुल का नाश हो जाता था। अर्जुन यह चाह रहा है कि कृष्ण कह दे कि हे अर्जुन! तू बिलकुल ठीक कह रहा है ताकि कल जिम्मेवारी उसकी ना रहे कल को कोई बात कहे तो वह कह सके कि कृष्ण तुमने ही तो मुझको कहा था, अर्जुन युद्ध से भागना चाहता है और वह यह भी चाहता है कि कृष्ण उसको आज्ञा दे दें। कृष्ण को भी पता है यह ब्राह्मण है नहीं, सिर्फ ब्राह्मण वाली बातें कर रहा है, कृष्ण को पता है अर्जुन ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय है यह तलवार के सिवा कुछ नहीं जानता, कृष्ण को यह भी पता है अर्जुन जैसा क्षत्रिय पूरी पृथ्वी पर नहीं, अगर कृष्ण कह भी देते कि जा अर्जुन जंगल में चला जा सन्यासी बन जा तो कृष्ण को पता है यह थोड़ी देर जंगल में बैठेगा और उदास हो जाएगा और थोड़ी देर में ही जंगल से लकड़ी तोड़ कर तीर-धनुष बना लेगा थोड़ी देर में देखेगा कोई देखने वाला नहीं तो पशु-पक्षियों के शिकार करने शुरू कर देगा, क्योंकि पशु-पक्षी तो अपने नहीं वह तो संबंधी नहीं, उनको मारने में अर्जुन फिर अपने स्वभाव में आ जायेगा।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]