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निहत्य धार्तराष्ट्रान्नः का प्रीतिः स्याज्जनार्दन।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः ।।

तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव।।
अर्थ "हे जनार्दन ! धृतराष्ट्र के सम्बन्धियों को मारकर हम लोगों को क्या प्रसन्नता होगी ? इन अपनों को मारने से तो हमें पाप ही लगेगा। इसलिए अपने बान्धव धृतराष्ट्र सम्बन्धियों को मारने के लिए हम योग्य नहीं है। क्योंकि हे माधव ! अपने कुटुम्बियों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?" व्याख्याक्रोध व लोभ में आकर हम उन्हें मार भी दें तो भी क्रोध शांत होने पर हमें रोना ही पड़ेगा। हमने क्रोध में आकर क्या अनर्थ कर दिया ऐसा पश्चाताप ही होगा। कुटुम्ब की याद आने पर बार-बार उनका अभाव खटकेगा। चित में उनकी मृत्यु का शोक सताता रहेगा इस लोक में जब तक जीते रहेंगे तब तक हमारे मन में प्रसन्नता नहीं होगी। इनको मारने से जो हमें पाप लगेगा वह अगले जन्म भयंकर दुख देने वाला होगा। इसलिए हम धृतराष्ट्र के सम्बन्धियों को मारने के लिए योग्य नहीं क्योंकि धृतराष्ट्र के सम्बन्धी अपने भी सम्बन्धी हैं। अपने ही रिश्तेदारों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे।
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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