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न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।।

येषामर्थे काङ्क्षितं नो राज्यं भोगाः सुखानि च।
त इमेऽवस्थिता युद्धे प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।।
अर्थ मैं न तो विजय चाहता हूँ ,न ही राज्य और सुख को। हे कृष्ण हमें राज्य या भोग से क्या लाभ होगा?जिनके लिए हम चाहते हैं राज्य और सुख, वे लोग तो युद्ध में स्थित हैं, अपने प्राणों और धन की इच्छा को छोड़कर। व्याख्याअर्जुन कहते हैं कि मान लेते हैं कि युद्ध में हमारी विजय हो जाए, विजय होने से पूरी पृथ्वी पर हमारा राज्य हो जाएगा। पृथ्वी पर राज्य होने से हमें अनेक प्रकार के सुख मिलेंगे। परन्तु इनमें से मैं कुछ नहीं चाहता। मेरे मन में विजय, राज्य व सुखों की इच्छा नहीं। जब राज्य व सुख की इच्छा ही नहीं फिर चाहे कितना भी बड़ा राज्य मिले, कितने ही अच्छे-अच्छे भोग मिले कुटुम्बियों को मारकर हम चाहे कितने भी साल जियें उससे भी हमें क्या लाभ। तात्पर्य है कि ये विजय, राज्य, भोग तभी सुख दे सकते हैं, जब भीतर से इनकी कामना हो, प्रियता हो, महत्व हो। परन्तु हमारे भीतर तो कामना ही नहीं तो यह हमें क्या सुख दे सकते हैं। आप इस बात का अच्छे से अध्ययन कर लें कि जो सुख है वह भीतर है राज्य व भोग में नहीं बहुत से लोग धन इकठ्ठा करने में जीवन लगा देते हैं। उनको यह लगता है कि राज्य यानि धन पावर आने पर मैं सुखी हो जाऊंगा तो यह आपकी गलतफहमी है। सुख भीतर है धन में नहीं, जब आप भीतर का सुख खोज लेते हो, संसार के सारे भोग नाशवान नजर आते हैं। अर्जुन कह रहे हैं कि इन कुटुम्बों को मारकर हमारी जीने की इच्छा नहीं क्योंकि जब कुटुम्ब ही मर जाएगा तब ये राज्य व भोग किस काम आएंगे। राज्य भोग आदि तो कुटुम्ब के लिए होते हैं। पर जब ये ही मर जाएंगे तो इनका भोग कौन करेगा। व्यक्ति राज्य, सुख, भोग आदि जो भी चाहता है वह अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं चाहता। वह धन परिवार, प्रेमियों, मित्रों आदि के लिए चाहता है। अर्जुन कहता है कि आचार्यों, पिताओं, पितामह, पुत्रों को सुख पहुंचाना व उनकी सेवा करना चाहता था। इसलिए ही हम युद्ध करके राज्य लेना चाहते थे। पर वे ही सब के सब अपने प्राणों की और धन की आशा को छोड़कर युद्ध करने के लिए हमारे सामने इस रणभूमि में खड़े हैं। इसलिए मैं राज्य भोग, विजय नहीं चाहता। ‘‘जिनके लिए हम राज्य सुख चाहते हैं। वो लोग कौन है आगे श्लोकों में’’
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अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

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