पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता।।
अर्थ हे आचार्य ! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युमन के द्वारा व्यूह रचना से खड़ी हुई पाण्डवों की इस बड़ी भारी सेना को देखिए। व्याख्याआचार्य: देखिए इस पांडुवों की भारी सेना को आचार्य कहने का दुर्योधन का यह भाव है कि आप हम सब के कौरवों व पांडुवों के आचार्य है। शस्त्र विद्या सिखाने से आप हम सबके गुरू हैं, इसलिए आपके मन में किसी का पक्ष नहीं। आपके मन में होना ही नहीं चाहिए क्योंकि आप तो सबके आचार्य हो, यानि दुर्योधन का भाव है कि आप तो सबका भला सोचते हो। लेकिन आपसे ही शस्त्र सिखकर धृष्टद्युमन आपको ही मारने के लिए सेनापति बनकर आया है।
देखिए इन पाण्डुओं की भारी सेना को। कौरवों की अपेक्षा पांडुवों की सेना कम थी। कौरवों की सेना ग्याहर अक्षोहिणी थी व पाण्डुओं की सात अक्षोहिणी फिर भी दुर्योधन कहता है पांडुवों की भारी सेना को देखो।
यह आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद पुत्र धृष्टद्युमन के द्वारा व्यूह रचना से खड़ी की गई है।
दुर्योधन ऐसी बातें बोल कर आचार्य के मन के भाव बदलना चाहता है, आपके बुद्धिमान शिष्य यानि वह बुद्धिमान तो है ही क्योंकि आपसे शस्त्र सीखकर आपको ही मारने आ गया है। यहाँ बोलता है ‘‘दु्रपद पुत्र धृष्टद्युमन’’ यहां सीधा धृष्टद्युमन भी बोल सकता था लेकिन द्रोणाचार्य के साथ दु्रपद वैर भाव रखता था। वैरभाव भी इतना रखता था कि दु्रपद ने द्रोपदी का स्वयंवर इसलिए रखा था जो सबसे बड़ा धनुर्धर होगा वह द्रुपद का दामाद हो उस धनुर्धर से द्रोण को मरवा सकें। उस वैरभाव को याद दिलाने के लिए दुर्योधन यहाँ द्रुपद पुत्र शब्द का प्रयोग करता है कि अब वैर निकालने का अच्छा मौका है। (इसने व्यूह रचना में सेना खड़ी की है दु्रपद ने)