Logo
संजय बोले
दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ।।
अर्थ संजय ने कहा वज्रव्यूह से खड़ी हुई पांडव सेना को देखकर राजा दुर्योधन ने द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन बोले | व्याख्यासंजय बोले:- दुर्योधन ने उस समय पांडुवों की सेना को व्यूह रचनाकार में खड़ी हुई देखा और पांडुवों की व्यूह रचनाकार से खड़ी सेना को देखने का तात्पर्य है समूह में खड़ी हुई सेना पांडुवों की सेना बड़ी ही सुचारू रूप से और एक ही भाव में खड़ी थी, उनकी सेना में दो भाव नहीं थे यानि मतभेद नहीं था। कौरव सेना में मतभेद था क्योंकि दुर्योधन, दुशासन आदि युद्ध करना चाहते थे। भीष्म, द्रोण आदि युद्ध नहीं करना चाहते थे। यह प्रकृति का नियम है जहाँ आपस में मतभेद होता है वहाँ तेज का प्रभाव नहीं रहता। इसलिए संख्या में कम होने पर भी पांडुवों की सेना का तेज ज्यादा था। उसका दूसरी सेना पर असर पड़ा था। आचार्य के संग होकर राजा ने यह वचन बोला: दुर्योधन को तो पितामह भीष्म के पास जाना चाहिए था। क्योंकि वह तो सेनापति थे, पर दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास ही क्यों गया, इसका कारण यह है कि द्रोण और भीष्म दोनों अभय पक्षपाती थे। उन दोनों में से भीष्म को तो पता है वह जैसे चाहे मना लेगा क्योंकि भीष्म तो कुटुम्ब संबंध में दादा जी है दुर्योधन सोच रहा है कि पितामह भीष्म को तो मैं मना ही लूँगा। इसलिए दुर्योधन ने बड़े विवेक से गणित किया द्रोण को मनाना जरूरी है क्योंकि द्रोण अर्जुन पे ज्यादा कृपा रखते थे इसलिए वो आचार्य के पास गया व जाकर नीतियुक्त गंभीर वचन बोलता है जिससे द्रोण के मन में पांडुवों के प्रति द्वेष पैदा हो जाये और वे हमारे ही पक्ष में रहते हुए युद्ध करें। जिससे हमारी विजय हो जाये हमारा स्वार्थ सिद्ध हो जाये।
logo

अपने आप को गीता परमरहस्यम् की गहन शिक्षाओं में डुबो दें, यह एक कालातीत मार्गदर्शक है जो आत्म-खोज और आंतरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।

Follow us on

अधिक जानकारी या निस्वार्थ योगदान के लिए आज ही संपर्क करे।

[email protected] [email protected]