तस्य संजनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ।।
सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान्।।
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ।।
अर्थ "उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए कौरवों में वृद्ध प्रभावशाली पितामह भीष्म ने सिंह के समान गरजकर जोर से शंख बजाया।
उसके बाद संख और भेरी नगाड़े तथा ढोल और नरसिंघे बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका शब्द बड़ा भयंकर हुआ" व्याख्याकौरवों में सबसे बड़े पितामह थे, पितामह ने दुर्योधन को खुश करने के लिए जैसे सिंह (शेर) के गर्जना करने पर हाथी आदि बड़े-बड़े पशु भी भयभीत हो जाते हैं, ऐसे ही गर्जना करने मात्र से सभी भयभीत हो जाए और दुर्योधन खुश हो जाए। इसी भाव से भीष्म ने सिंह के समान गरजकर जोर से प्रभावशाली शंख बजाया। भीष्म ने युद्ध आरंभ करने के लिए शंख नहीं बजाया था उन्होंने तो दुर्योधन को खुश करने के लिए शंख बजाया था। भीष्म के शंख बजाने पर कौरवों की सेना में शंख, नगाड़े, ढोल, मृदंग, नरसिंघे बाजे एक साथ बज उठे, वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ। शब्द अर्थात् आवाज बड़ी जोर से गूंज रही थी।